आख़िर क्यों हमें फ़िक्र नहीं अपने ही पर्यावरण की ?

 


 


पृथ्वी पर जीवन और पर्यावरण का बहुत गहरा संबंध है। पर्यावरण का यदि हम शाब्दिक अर्थ समझे तो परि और आवरण से मिलकर इस शब्द की उत्पत्ति हुई है। इसको यदि हम विस्तार से समझे तो परि का अर्थ जो 'हमारे चारों ओर है' और आवरण का अर्थ होता है 'जो चारों ओर से घिरा हुआ है'। अब हम अर्थ को तो भलीभांति समझ रहे हैं लेकिन क्या हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिए जागरुक हैं? शायद नहीं और जब तो बिल्कुल नहीं जब तक कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा से हम घिर नहीं जाते।



मनुष्य प्रजाति इस पृथ्वी की सबसे स्वार्थी प्रजाति में से एक है क्योंकि हमने अपने स्वार्थ के लिए इस हरी-भरी प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण दुनिया को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमने अपने स्वार्थ के लिए जंगलों को काटा,नदियों एवं वातावरण को प्रादूषित किया और न्यूक्लियर पवार का दुरुपयोग किया। जिसका खामियाजा भी आज हमें मिलकर भुगतना पड़ रहा है। बेमौसम के वर्षा होना,वातावरण का अनुकूलता न होना,सूखा पड़ना,जलस्तर कम होना और अनेक ऐसी समस्या हैं जिनके कारण आज जीवन पूरी तरह से प्रभावित हो चुका है।



आज के समय में औद्योगिक क्रांति इंसान के जीवन में अनेक सुविधाएं तो लेकर जरूर आयी हैं लेकिन यदि इसका भविष्य बेहद खतरनाक है। क्योंकि उद्योगों से निकलने वाला धुंआ,वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण और खेतों में डलने वाले पेस्टीसाइड भी पर्यावरण के सबसे बड़ा दुश्मन हैं। जोकि धीरे-धीरे जीवन को समाप्ति को ओर ले जा रहे हैं 



बेहतर जीवन और बेहतर वातावरण के लिए पर्यावरण संरक्षण बेहद जरूरी है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा तभी जाकर हम अपना और दुनिया का भविष्य को बचा सकते हैं। हमें संकल्प करना होगा कि हम सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बन्द करेंगे,प्रदूषित धुंआ नहीं करेंगे,पेड़ों की कटाई नहीं करेंगे,प्राकृतिक संसाधनों को दुरुपयोग नहीं करेंगे और अधिक मात्रा में वृक्षारोपण करेंगे। तब जाकर हम इस संकल्प को धरातल पर उतार कर पृथ्वी का जीवन संरक्षण करने में सफल रहेंगे।


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